होली और जुमा मुख़ातिब हैं. संयोग से रंग के दिन जुमा है. कुछ नज़रों में होली और जुमे का एक दिन होना उन्हें संघर्ष लगता है. इस संघर्ष में अकारण भय है या अकारण टकराव. एक अकारण असहजता, लेकिन हिंदी के पन्नों में तो होली और मुसलमान भी मयार और मिसाल के मकाम हैं. तो आज के फाग में कुछ गवाहियां और मिसालें हिन्दी (हिन्दवी) की शुरुआत से अब तक के कुछ मुसलमान कवियों की. इससे शायद कोई रौशनी दिखे. प्रज्ञा जागृत हो. कुछ रास्ता निकले और शायद समझ आ सके रंग-बिरंगे का सही मायने.