मौसम-ए-होली, गुलाल-ए-प्यार… रंगों के छींटे और बौछार, अनोखा है इन कवि-शायरों का संसार

होली पर लोककविता हो या लोकगीत… हास्य के साथ बड़ी से बड़ी बातें कह देने की परंपरा रही है. कवि, शायर जज्बाती होते हैं, उन्होंने अपने दिल की बातें कहने के लिए इस दिन को बखूबी चुना है. चूंकि होली पर हंसी-ठिठोली आम बात है लिहाजा इसी बहाने तंज के तीर भी खूब चलाये जाते हैं. होली को ध्यान में रखकर लिखी गई शायरी और कविताओं में लोकरंग के साथ-साथ समसामयिकता भी खूब देखने को मिलती है. कभी कोई हिंदू-मुस्लिम एकता की बातें लिखता है तो कोई चुनावी राजनीति पर तंज कसता है.

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